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पथरी की जांच : मॉडर्न तकनीकें

Updated: Sep 21, 2023



पथरी की समस्या आजकल बढ़ती जा रही है और इसे देखते हुए चिकित्सा विज्ञान में भी कई तरह की नई और मॉडर्न तकनीकें विकसित की गई हैं। इस ब्लॉग में हम उन्हीं मॉडर्न तकनीकों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिनका इस्तेमाल पथरी के निदान में किया जाता है।


उल्ट्रासोनोग्राफी (Ultrasonography)


उल्ट्रासोनोग्राफी एक बिना दर्द और सर्जरी की जांच प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल पथरी की स्थिति की जांच के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में उच्च ध्वनि की तरंगों का इस्तेमाल होता है जिससे की शारीर के अंदर की संरचना का चित्र प्राप्त किया जा सकता है।


उल्ट्रासोनोग्राफी एक निष्कलंक और सुरक्षित तरीका है शारीर के अंदर की किसी भी क्षेत्र की जांच के लिए। आइए जानते हैं इसके कुछ मुख्य विशेषताएँ और कैसे यह पथरी की जांच में मदद कर सकता है:


प्रक्रिया

  • ट्रांसड्यूसर: इसमें एक डिवाइस होता है जिसे ट्रांसड्यूसर कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल उच्च ध्वनि की तरंगें उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

  • ध्वनिक तरंगें: इन तरंगों का प्रयोग शारीर के अंदर की ऊतकों या अंगों की जांच में होता है। जब यह तरंगें किसी ऊतक से मिलती हैं, तो वे वापस लौटती हैं, जिससे एक छवि बनती है।

  • इमेजिंग: जब तरंगें वापस आती हैं, तब उसका विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर एक छवि तैयार की जाती है जिसे डॉक्टर देख सकते हैं।


पथरी की जांच में उपयोगिता

  1. आकार और स्थिति की जांच: उल्ट्रासोनोग्राफी की मदद से पथरी के आकार और स्थिति का पता लगाया जा सकता है, ताकि उचित उपचार की योजना बनाई जा सके।

  2. निष्कलंक प्रक्रिया: इसमें कोई आंतरंग इंजेक्शन या चिरा नहीं होता, इसलिए यह एक निष्कलंक और सुरक्षित प्रक्रिया है।

  3. समय की बचत: इस प्रक्रिया को पूरा करने में ज्यादा समय नहीं लगता है और इसमें आपको अस्पताल में भी नहीं रहना पड़ता।


इस प्रक्रिया का उपयोग पथरी के अलावा अन्य शारीरिक संरचनाओं की जांच में भी किया जा सकता है। इसमें कोई दुष्प्रभाव नहीं होते और यह एक प्रमुख औजार के रूप में स्वीकार किया जाता है पथरी के निदान में।


कंप्यूटराइज़्ड टोमोग्राफी (CT स्कैन)


कंप्यूटराइज़्ड टोमोग्राफी, जिसे हम CT स्कैन के नाम से जानते हैं, एक प्रकार की रेडियोलॉजिकल जांच होती है जिसमें X-किरणों का इस्तेमाल किया जाता है।


इस प्रक्रिया में, रोगी के शारीर को विभिन्न कोणों से X-किरणों की सहायता से स्कैन किया जाता है, जिससे शारीर के अंदर की संरचनाओं की विस्तृत छवियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। इस तकनीक के माध्यम से, डॉक्टर पथरी की सटीक स्थिति, आकार और धारण का विस्तृत विश्लेषण कर सकते हैं, जिससे की सही निदान और उपचार की संभावनाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है।


इसके अलावा, CT स्कैन उन स्थितियों में भी उपयोगी होता है जब पथरी मूत्रमार्ग के किसी अन्य हिस्से में स्थित हो, जिसे साधारण उल्ट्रासोनोग्राफी से जांचना संभव नहीं हो।


इस प्रक्रिया में साधारणत: कोई दर्द नहीं होता है, हालांकि रोगी को एक स्थिर स्थिति में रहने की आवश्यकता होती है। CT स्कैन की जानकारी से, डॉक्टर को सही उपचार योजना तैयार करने में सहायता मिलती है, जिससे पथरी से संबंधित जटिलताओं को कम किया जा सकता है।


इंट्रावेनस पायलोग्राफी (IVP)


इंट्रावेनस पायलोग्राफी (IVP) एक प्रकार की रेडियोलॉजिकल परीक्षण प्रक्रिया है, जिसमें मूत्र प्रणाली की विस्तृत जांच की जाती है। चलिए इस परीक्षण की प्रक्रिया, महत्व और इसके अन्य पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।


परिचय

इंट्रावेनस पायलोग्राफी, जिसे IVP के नाम से भी जाना जाता है, मूत्र प्रणाली की रेडियोलॉजिकल जांच की एक प्रक्रिया है। इसमें, एक रेडियोधर्मी डाई (जिसे आमत: आयोडिनेट डाई कहते हैं) को रोगी की नसों में सीधा शरीर में संचारित किया जाता है।


प्रक्रिया

  1. पूर्व-तैयारी – परीक्षण से पहले रोगी से कुछ घंटे तक कुछ न खाने की सलाह दी जाती है।

  2. डाई का संचारन – रोगी की एक नस में सूई द्वारा डाई संचारित किया जाता है।

  3. इमेजिंग – इसके बाद, विभिन्न समयांतरालों पर X-रे चित्र लिए जाते हैं, ताकि डाई का आंतरिक प्रवाह और मूत्र प्रणाली की संरचना का आकलन किया जा सके।


महत्व

  1. पथरी का पता लगाना – IVP की मदद से मूत्र प्रणाली में मौजूद पथरियों की स्थिति और आकार का निर्धारण किया जा सकता है।

  2. अन्य विकारों की जांच – यह परीक्षण मूत्राशय, मूत्रवाहिनी और गुर्दों में अन्य विकारों जैसे कि गांठ, संक्रमण आदि की पहचान में भी सहायक होता है।


सावधानियां

  1. एलर्जी – कुछ रोगियों को डाई से एलर्जी की समस्या हो सकती है, इसलिए पूर्व में ही डाक्टर से सलाह लेना जरुरी है।

  2. गर्भवती महिलाएं – गर्भवती महिलाओं को इस परीक्षण से बचना चाहिए क्योंकि इसमें X-किरणों का प्रयोग होता है, जिससे गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान हो सकता है।


निष्कर्ष

इंट्रावेनस पायलोग्राफी, एक महत्वपूर्ण और विश्वसनीय परीक्षण है जिससे मूत्र प्रणाली के विभिन्न रोगों और विकारों का पता लगाया जा सकता है। इसके माध्यम से जटिल समस्याओं का भी समय रहते निदान किया जा सकता है, जिससे उचित और प्राथमिक चिकित्सा सुनिश्चित होती है।


मूत्राशय की जांच (Cystoscopy)


मूत्राशय की जांच (Cystoscopy) एक विशेष प्रकार की चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें उच्च तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल होता है। इसके तहत, चलिए हम इस प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें।


प्रक्रिया का परिचय

मूत्राशय की जांच में एक सिस्टोस्कोप नामक विशेष उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। यह उपकरण एक पतली और लचीली नली होती है जिसके एक छोटे कैमरा के साथ एक प्रकार का दर्शक होता है जिसके माध्यम से डॉक्टर मूत्राशय और मूत्रवाही नली का निरीक्षण कर सकते हैं।


क्यों जरूरी है

  1. पथरी की जांच: मूत्रमार्ग में पथरी की सटीक स्थिति और आकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए।

  2. संक्रमण की जांच: मूत्रमार्ग में कोई संक्रमण या सूजन हो तो उसकी जांच के लिए।

  3. अन्य समस्याओं का निदान: जैसे की मूत्राशय में रुखावट या अन्य संरचनात्मक समस्याओं की जांच।


प्रक्रिया

  1. पूर्व प्रक्रिया: पहले रोगी को सामान्य या स्थानीय मूर्च्छा दी जाती है ताकि दर्द और असहजता से बचा जा सके।

  2. सिस्टोस्कोप की प्रवेश: इसके बाद, सिस्टोस्कोप को ध्यान से और सावधानी से मूत्रमार्ग में प्रविष्ट कराया जाता है।

  3. निरीक्षण: डॉक्टर इस उपकरण के माध्यम से मूत्राशय और आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण करते हैं, और यदि कोई समस्या दिखाई दे, तो उसका नोट करते हैं।


सावधानियां

  • यह प्रक्रिया केवल अनुभवी और प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा ही की जानी चाहिए।

  • रोगी को प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वह सहमति दे सके।


निष्कर्ष

मूत्राशय की जांच (Cystoscopy) से डॉक्टर मूत्रमार्ग की संरचना और संबंधित समस्याओं की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे कि यथासम्भाव सही और कारगर उपचार की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके। यह तकनीक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण योगदान देती है और इसके माध्यम से अनेक संकटपूर्ण स्थितियों का सम्य से निदान और उपचार संभव होता है।


मूत्र मार्ग की उल्ट्रासाउंड


मूत्र मार्ग की उल्ट्रासाउंड एक नॉन-इनवेसिव (बिना चीर फाड़ की) प्रक्रिया है जिसमें मूत्र मार्ग की विविध अवयवों की जांच की जाती है। इसमें निम्नलिखित बिंदु पर विचार किया जाता है:


1. प्रक्रिया

इस प्रक्रिया में, एक विशेष प्रकार का जेल स्कैनर पर लगाया जाता है और एक उल्ट्रासाउंड प्रोब का इस्तेमाल करके विभिन्न हिस्सों की छवियाँ प्राप्त की जाती हैं।


2. फायदे

  • बिना दर्द और साइड इफेक्ट की जांच

  • त्वरित और सटीक परिणाम

  • किसी प्रकार की रेडिएशन का अभाव


3. क्या देखा जाता है

  • मूत्राशय की संरचना

  • मूत्रवाहिका की स्थिति

  • मूत्र वृक्क की जाँच

  • पथरी या कोई अन्य रुकावट का पता लगाना


4. संबंधित समस्याएं

यदि जांच में कोई विचलन पाया जाता है, तो इसका संबंध निम्न समस्याओं से हो सकता है:

  • पथरी

  • मूत्र मार्ग संक्रमण

  • प्रोस्टेट की समस्याएँ


5. निगरानी और फॉलो-अप

इस जांच के आधार पर, डॉक्टर संबंधित उपचार योजना तैयार कर सकते हैं और रोगी की निगरानी कर सकते हैं।


आशा है कि इस जानकारी से आपको मूत्र मार्ग की उल्ट्रासाउंड से संबंधित पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई होगी। यदि आपको और अधिक जानकारी चाहिए, तो कृपया विशेषज्ञ से परामर्श करें।


निष्कर्ष

पथरी की समस्या के निदान में मॉडर्न तकनीकें कारगर साबित हो सकती हैं। समय रहते चिकित्सा परामर्श और उचित जांच से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। उम्मीद है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आपको पथरी के निदान की मॉडर्न तकनीकों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई होगी।


(ध्यान दें कि यह ब्लॉग शिक्षात्मक प्रयोजनों के लिए है और चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि आपको पथरी से संबंधित कोई समस्या हो तो कृपया चिकित्सा परामर्श लें।)



 
 

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