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गुर्दे की पथरी और आयुर्वेद: चिकित्सा प्रक्रिया

गुर्दे की पथरी, एक ऐसी समस्या है जिसका सामना कई लोगों को करना पड़ता है। यह समस्या न केवल दर्दनाक होती है, बल्कि कभी-कभी जीवन भी धर्मांतक कर सकती है। आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जिसमें इस तरह की समस्याओं का समाधान भी दिया गया है। आइए जानते हैं कि आयुर्वेद कैसे गुर्दे की पथरी की समस्या का समाधान कर सकता है।

गुर्दे की पथरी, एक ऐसी समस्या है जिसका सामना कई लोगों को करना पड़ता है। यह समस्या न केवल दर्दनाक होती है, बल्कि कभी-कभी जीवन भी धर्मांतक कर सकती है। आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जिसमें इस तरह की समस्याओं का समाधान भी दिया गया है। आइए जानते हैं कि आयुर्वेद कैसे गुर्दे की पथरी की समस्या का समाधान कर सकता है।


परिचय:


गुर्दे की पथरी, एक ऐसी विकट स्थिति है जिसमें गुर्दे में छोटे या बड़े पथरी का निर्माण हो जाता है। इस समस्या का सामना करने वाले व्यक्तियों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। आयुर्वेद, एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, इस समस्या का सामना करने के लिए प्राकृतिक और सांविदानिक उपाय प्रदान करती है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कैसे आयुर्वेद गुर्दे की पथरी की समस्या का समाधान प्रदान कर सकता है, और इसकी चिकित्सा प्रक्रिया क्या है।


आइये हम आगे इस दिशा में कदम बढ़ाते हैं और जानते हैं कि आयुर्वेद इस समस्या के इलाज में कैसे मदद कर सकता है।


आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:


आयुर्वेद के अनुसार, पथरी तब बनती है जब पित्त दोष बढ़ जाता है। जब शारीर में तरल पदार्थों की कमी होती है, तो यह पित्त दोष बढ़ जाता है, जिसका परिणामस्वरूप पथरी बन जाती है।


दोषों का संबंध:


आयुर्वेद में बताया गया है कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति तीन मुख्य दोषों - वात, पित्त, और कफ़ के संतुलन पर निर्भर करती है। इस सिद्धांत के अनुसार, गुर्दे की पथरी का निर्माण इन दोषों के असंतुलन से होता है। आइए इस संबंध को विस्तार से समझते हैं:

  1. वात दोष: जब वात दोष बढ़ जाता है, तो यह शारीर में सूजन और दर्द का कारण बन सकता है। गुर्दे में पथरी होने पर, इसका प्रभाव अधिक होता है, जिससे पथरी से जुड़ी पीड़ा बढ़ जाती है।

  2. पित्त दोष: पित्त का असंतुलन मूत्र मार्ग में संक्रमण और सूजन का कारण बन सकता है। इसके अलावा, पित्त का अधिक होना पथरी के निर्माण की संभावना को भी बढ़ा सकता है।

  3. कफ़ दोष: कफ़ का बढ़ना शरीर में जलन और संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है। गुर्दे की पथरी में, यह मूत्र मार्ग में संक्रमण की संभावना को बढ़ा सकता है।


आयुर्वेदिक चिकित्सा में इन दोषों को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है, ताकि गुर्दे की पथरी से मुक्ति मिल सके। इसके लिए विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां और आयुर्वेदिक उपचार प्रदान किए जाते हैं।


आहार और जीवनशैली:


आयुर्वेद के अनुसार, आहार और जीवनशैली गुर्दे की पथरी के प्रकोप और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके आधार पर, चलिए इस पर विस्तार से चर्चा करें:


सही आहार:

  1. संतुलित आहार: शारीरिक स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता है। फल, सब्जियाँ, धान्य और दलें सहित संतुलित आहार का सेवन करें।

  2. कम नमकीन भोजन: अत्यधिक नमक का सेवन करना पथरी के निर्माण को बढ़ावा दे सकता है, इसलिए इसे सीमित करना चाहिए।

  3. पर्याप्त जल: दिनभर में कम से कम 2-3 लीटर पानी पीना चाहिए, ताकि गुर्दे सही धरा से काम कर सकें और पथरी का निर्माण न हो।


सही जीवनशैली:

  1. नियमित व्यायाम: रोजाना कम से कम 30 मिनट की व्यायाम की आदत बनायें।

  2. पर्याप्त नींद: पर्याप्त मात्रा में नींद लेना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

  3. तनाव से बचाव: तनाव और चिंता से दूर रहने की कोशिश करें, क्योंकि ये भी पथरी का कारण बन सकते हैं।


आयुर्वेदिक उपाय:

  1. औषधीय चाय: तुलसी, गिलोय और अन्य औषधीय जड़ी बूटियों से बनी चाय का सेवन करें।

  2. योग और प्राणायाम: योग और प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाया जा सकता है।


इस प्रकार, एक संतुलित आहार और सही जीवनशैली के माध्यम से, गुर्दे की पथरी और इससे संबंधित समस्याओं से बचाव संभव है। आयुर्वेद इस संदर्भ में व्यक्ति की सहायता कर सकता है और उसे एक स्वस्थ और संतुलित जीवन की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।


चिकित्सा और औषधियां:


आयुर्वेदिक चिकित्सा में गुर्दे की पथरी का इलाज करने के लिए विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां और औषधियां प्रयोग की जाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख औषधियां और उनके प्रयोगों का वर्णन किया गया है:


1. चंदन

प्रयोग: चंदन की छड़ी का चूर्ण तैयार करें और इसमें ताजे पानी के साथ मिलाकर एक पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट का सेवन रोजाना करें।


2. वरुण (Crateva Nurvala)

प्रयोग: वरुण की छाल का काढ़ा तैयार करके दिन में दो बार सेवन करें। यह गुर्दे की पथरी को तोड़ने में सहायक होता है।


3. गोक्षुर (Tribulus Terrestris)

प्रयोग: गोक्षुर की जड़ का चूर्ण तैयार करें और इसे गर्म पानी के साथ सेवन करें। यह पथरी की समस्या को दूर करने में सहायक होता है।


4. पुनर्नवा (Boerhavia Diffusa)

प्रयोग: पुनर्नवा के पत्तों का रस निकालकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करें। यह गुर्दे की सफाई में मदद करता है।


5. शिलाजीत

प्रयोग: शिलाजीत का सेवन करने से गुर्दे मजबूत होते हैं और पथरी की संभावना कम होती है।


6. कुलथी दल

प्रयोग: कुलथी की दाल का सूप तैयार करके रोजाना सेवन करने से पथरी की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।


आयुर्वेदिक थेरेपीज़ और चिकित्सा प्रक्रियाएँ:

  1. पंचकर्म: पंचकर्म चिकित्सा, जिसमें शारीरिक शोधन और निरामय क्रियाओं का समाहित होता है, यह गुर्दे की पथरी के इलाज में भी प्रभावी हो सकती है।

  2. अभ्यंग (Abhyanga): नियमित रूप से शारीर मालिश करने से शारीर की नाड़ियों में संचार बेहतर होता है जिससे पथरी की संभावना कम होती है।


इन औषधियों और चिकित्सा प्रक्रियाओं का नियमित रूप से अपनाना पथरी से बचाव और इलाज में सहायक साबित हो सकता है। हालांकि, किसी भी चिकित्सा की शुरुआत से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।


योग और प्राणायाम:


गुर्दे की पथरी से संबंधित समस्याओं को दूर करने में योग और प्राणायाम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आइए जानते हैं कौन-कौन से योगासन और प्राणायाम इस समस्या में साधारण रूप से प्रभावी हो सकते हैं।


योग:

  1. पवनमुक्तासन (Wind-Relieving Pose): यह आसन आंत्र में गैस की समस्या को दूर करने में मदद करता है और गुर्दे की सही कार्यक्षमता को बढ़ावा देता है।

  2. भुजंगासन (Cobra Pose): यह आसन पीठ की मजबूती के लिए अच्छा होता है और यह भी गुर्दों के संबंधित रोगों में लाभकारी होता है।

  3. पश्चिमोत्तानासन (Seated Forward Bend): यह आसन पेट की सारी तनाव को दूर करता है और गुर्दों की सही कार्यक्षमता को बढ़ावा देता है।


प्राणायाम:

  1. अनुलोम-विलोम (Alternate Nostril Breathing): इस प्राणायाम से शारीर में वायु का संचार बेहतर होता है और इससे गुर्दों की सहीता में भी सुधार होता है।

  2. कपालभाति (Skull Shining Breath): यह प्राणायाम शारीर की सभी प्रकार की विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे गुर्दों पर बोझ कम होता है।

  3. भ्रामरी प्राणायाम (Bee Breath): इस प्राणायाम से मन शांत होता है और तनाव कम होता है, जिससे गुर्दों पर बोझ कम होता है।


सावधानियां:

इन योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियां ध्यान में रखनी चाहिए, जैसे की धीरे-धीरे और सावधानी से करना, किसी भी प्रकार की असहजता होने पर तुरंत रोक देना आदि।


निष्कर्ष:

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में, योग और प्राणायाम से शारीरिक और मानसिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे गुर्दे की पथरी जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।


आयुर्वेद, गुर्दे की पथरी की समस्या का एक प्राकृतिक और स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है। इसमें आहार, औषधियाँ और योगिक प्रक्रियाओं के माध्यम से शारीरिक संतुलन को बनाया जा सकता है, जिससे व्यक्ति पथरी से मुक्ति पा सकता है।


इस प्रकार, आयुर्वेद गुर्दे की पथरी की समस्या में एक अच्छा विकल्प प्रदान कर सकता है, जिसमें संभावित दुष्परिणामों की संभावना कम होती है और स्थायी समाधान मिल सकता है।





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